राजाराम जाट के बलिदान दिवस 4 जुलाई पर उनको शत शत नमन


राजाराम ने सिनसिनवार जाटों का, रामकी चाहर की अध्यक्षता में, सोगरिया जाटों के साथ-साथ जिनके पास सोगर का किला था, संगठन किया। उसने बन्दूकों का संग्रह किया और जंगलों में कच्चे दुर्ग बनाकर छावनियां कायम कीं। सबसे मुख्य शिक्षा उसने विद्राहियों को यह दी कि वे अपने सेनानायकों की आज्ञापालन में त्रुटि न आने दें। उसने विश्रृंखलित जाति को संगठित करके आक्रमणकारी के साथ ही चतुर सैनिक बना दिया।
गोकुला की मृत्यु के ठीक पन्द्रह वर्ष बाद जाटों ने राजाराम की अध्यक्षता में मुगलों को दण्ड देने के लिए आगरे पर हमला कर दिया। आस-पास का सारा प्रदेश उनके अधिकार में हो गया। आगरे जिले से मुगल-शासन का अन्त कर दिया। सड़कें बन्द हो गई। मुगल-हाकिम शफीखां को किले में घेर लिया और सिकन्दरे पर आक्रमण कर दिया। इसके थोड़े ही दिन पश्चात् धौलपुर के करीब अगरखां तूरानी को जा घेरा और उसके घोड़े, गाड़ियों, यहां तक कि औरतों को भी छीन लिया। 

राजाराम जाट  Rajaram Jat
राजाराम जाट  Rajaram Jat


अगरखां और उसका दामाद इस लड़ाई में मारे गए। उसकी लड़की, औरतें जाटों के हाथ लगी। मई सन् 1686 ई. में सफदरजंग ने राजाराम का मुकाबला किया, किन्तु बेचारे को भागना पड़ा और अपने पुत्र आजमखां को मुकाबले के लिए भेजा। आजमखां के आने से पहले ही राजाराम ने सिकन्दरे पर आक्रमण कर दिया। मुगलों के 400 आदमियों को जहन्नुमरशीद कर दिया और शाइस्ताखां जो कि आगरे का सूबेदार था उसके इधर आने से पूर्व ही अकबर की कब्र को खोद डाला और उसकी हड्डियों को अग्नि में झोंक दिया। उसने सोने चांदी के बर्तन, चिराग और दूसरे सामानों को हाथ नहीं लगाया। केवल औरंगजेब का अपमान करने के लिए जिसने कि गोकुला का वध कराया था, उसने बुजुर्ग अकबर की समाधि को अवश्य हानि पहुंचाई।

मुगलों का नाक में दम करने के कारण राजाराम की धाक यहां तक बैठ गई थी कि जब शेखावतों और चौहानों में लड़ाई हुई तो चौहानों ने अपनी सहायता के लिए राजाराम को बुलाया। उसने बीजल गांव के युद्ध में चौहानों को मदद दी। इसी युद्ध में चार जुलाई सन् 1688 ई. को राजाराम की एक मुगल सैनिक की गोली से मृत्यु हो गई। ऐसा कहा जाता है कि सिनसिनी पर जब वेदारवख्त ने चढ़ाई की तो वह युद्ध में मारा गया था। उसकी मृत्यु का समय सभी लेखकों ने सन् 1688 ई. बतलाया है। source: Jatland.com

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