यह
ग्राम भारतीय थलसेना में किसी एक गाँव से सर्वाधिक सैनिक पैदा करने के
लिये प्रसिद्ध है जो रिकॉर्ड लगभग बीस साल से अपरिवर्तित है| अरावली पर्वत
श्रृंखला की एक शाखा इस गाँव के इलाकों को छूती हुई निकलती है| इसी
श्रृंखला की एक पहाड़ी के समीप यह गाँव बसा है जहाँ भूवैज्ञानिकों ने
ग्रेफाईट के स्रोत होने की पुष्टि की है|
रिकॉर्ड
भारतीय सेना में कुल सैनिकों की संख्या लगभग 11,00,000 सैनिक हैं, जिनमें से जाट रेजीमेंट की चौंतीस रेजिमेंट हैं| इन सभी में कुल सैनिकों की संख्या (शुदा-अफसर) का सर्वाधिक अंश चंदेनी गाँव को जाता है| यह जाट रेजिमेंट का लगभग दो प्रतिशत है तथा सम्पूर्ण भारतीय थल सेना का लगभग शून्य दशमलव एक प्रतिशत है| इस रिकॉर्ड का दूसरा हकदार भिवानी जिले का ही एक गाँव, हालुवास रहा है|
स्थापना
माना जाता है कि इस गाँव की स्थापना लगभग उन्नीस सौ दस ईस्वी के दशक में चंदा नाम की एक औरत के नाम पर पर हुई थी| यह औरत उस समय अपने पति और बाकी के परिवार के साथ बामला को छोड़ कर यहाँ आई थी| ये लोग वहाँ से किसी क़त्ल की घटना के पश्चात बचते बचाते पहुचे थे| यहाँ उन्होंने स्थायी ज़मीन का अधिग्रहण किया तथा लगभग पूरे गाँव की ज़मीन को चंदा ग्रेवाल ने बीस रुपये में खरीदा था|
स्थिति एवं मौसम
चंदेनी गाँव हरियाणा के भिवानी जिले में चरखी दादरी तहसील के अंतर्गत आता है यह दादरी-नारनौल रास्ते पर आने वाले बधवाना गाँव से संपर्क रोड पर लगभग तीन कि॰मी॰ की दूरी पर है| लगभग पाँच कि॰मी॰ की दूरी पर झोझू, पन्द्रह कि॰मी॰ दूर चरखी दादरी तथा पचास कि॰मी॰ दूर जिला मुख्यालय भिवानी है यहाँ की ज़मीन रेगिस्तानी मिटटी के सामान है और दिन के समय भीषण गर्मी पड़ती है| आस पास रेतीली ज़मीन होने की वजह से सर्दियों में यह स्थिति ठीक विपरीत हो जाती है|
अधिकाँश घर यहाँ जाट समुदाय के लोगों के हैं तथा बहुत कम घर निचली जाति के लोगों के हैं| हालांकि अपनी शुरूआती चरण में यह गाँव सिर्फ ग्रेवालों का था, परन्तु आस पास के क्षेत्रों में संगवान होने की वजह से यहाँ की जनसँख्या में आन्धिक परिवर्तन आ गया| आज यहाँ जाटों में लगभग नब्बे प्रतिशत लोग 'सांगवान' और 'अहलावत' हैं तथा लगभग दस प्रतिशत लोग 'ग्रेवाल' गोत्र से सम्बंधित हैं | गाँव के कुछ लोग मूल गाँव से अलग अपने खेतों में घर बनाकर भी रहते हैं जिस से गाँव की मुख्य जनसँख्या में गिरावट आई है|
व्यवसाय
यहाँ के लोग मूल रूप से खेती करते हैं। परन्तु इन लोगों में सेना में भारती होने का एक गहरा लगाव देखा गया है। गाँव के लगभग नब्बे प्रतिशत पुरुष अपने जीवन में कभी ना कभी भारतीय सेना का हिस्सा रह चुके हैं| लगभग हर घर में कोई ना कोई पुरुष भारतीय सशस्त्र सेनाओं (थल, जल अथवा वायु) में कार्यरत् है अथवा सेवानिवृत्त हो चुका है।
फ़सल
शुष्क ज़मीन होने की वजह से यहाँ जल स्तर बहुत नीचे है| गाँव में से एक नहर भी गुज़रती है जो लगभग पन्द्रह सालों से सूखी पड़ी है| अतः यहाँ के लोग भूमिगत पानी की मोटर लगाते हैं जो गहरे-गहरे कूओं में उतारी जाती हैं| इन कूओं की गहराई लगभग दो सौ फीट तक जाति है| यहाँ की मुख्य फ़सल हैं बाजरा, गेहूं, ज्वार और चना|
रिकॉर्ड
भारतीय सेना में कुल सैनिकों की संख्या लगभग 11,00,000 सैनिक हैं, जिनमें से जाट रेजीमेंट की चौंतीस रेजिमेंट हैं| इन सभी में कुल सैनिकों की संख्या (शुदा-अफसर) का सर्वाधिक अंश चंदेनी गाँव को जाता है| यह जाट रेजिमेंट का लगभग दो प्रतिशत है तथा सम्पूर्ण भारतीय थल सेना का लगभग शून्य दशमलव एक प्रतिशत है| इस रिकॉर्ड का दूसरा हकदार भिवानी जिले का ही एक गाँव, हालुवास रहा है|
स्थापना
माना जाता है कि इस गाँव की स्थापना लगभग उन्नीस सौ दस ईस्वी के दशक में चंदा नाम की एक औरत के नाम पर पर हुई थी| यह औरत उस समय अपने पति और बाकी के परिवार के साथ बामला को छोड़ कर यहाँ आई थी| ये लोग वहाँ से किसी क़त्ल की घटना के पश्चात बचते बचाते पहुचे थे| यहाँ उन्होंने स्थायी ज़मीन का अधिग्रहण किया तथा लगभग पूरे गाँव की ज़मीन को चंदा ग्रेवाल ने बीस रुपये में खरीदा था|
स्थिति एवं मौसम
चंदेनी गाँव हरियाणा के भिवानी जिले में चरखी दादरी तहसील के अंतर्गत आता है यह दादरी-नारनौल रास्ते पर आने वाले बधवाना गाँव से संपर्क रोड पर लगभग तीन कि॰मी॰ की दूरी पर है| लगभग पाँच कि॰मी॰ की दूरी पर झोझू, पन्द्रह कि॰मी॰ दूर चरखी दादरी तथा पचास कि॰मी॰ दूर जिला मुख्यालय भिवानी है यहाँ की ज़मीन रेगिस्तानी मिटटी के सामान है और दिन के समय भीषण गर्मी पड़ती है| आस पास रेतीली ज़मीन होने की वजह से सर्दियों में यह स्थिति ठीक विपरीत हो जाती है|
अधिकाँश घर यहाँ जाट समुदाय के लोगों के हैं तथा बहुत कम घर निचली जाति के लोगों के हैं| हालांकि अपनी शुरूआती चरण में यह गाँव सिर्फ ग्रेवालों का था, परन्तु आस पास के क्षेत्रों में संगवान होने की वजह से यहाँ की जनसँख्या में आन्धिक परिवर्तन आ गया| आज यहाँ जाटों में लगभग नब्बे प्रतिशत लोग 'सांगवान' और 'अहलावत' हैं तथा लगभग दस प्रतिशत लोग 'ग्रेवाल' गोत्र से सम्बंधित हैं | गाँव के कुछ लोग मूल गाँव से अलग अपने खेतों में घर बनाकर भी रहते हैं जिस से गाँव की मुख्य जनसँख्या में गिरावट आई है|
व्यवसाय
यहाँ के लोग मूल रूप से खेती करते हैं। परन्तु इन लोगों में सेना में भारती होने का एक गहरा लगाव देखा गया है। गाँव के लगभग नब्बे प्रतिशत पुरुष अपने जीवन में कभी ना कभी भारतीय सेना का हिस्सा रह चुके हैं| लगभग हर घर में कोई ना कोई पुरुष भारतीय सशस्त्र सेनाओं (थल, जल अथवा वायु) में कार्यरत् है अथवा सेवानिवृत्त हो चुका है।
फ़सल
शुष्क ज़मीन होने की वजह से यहाँ जल स्तर बहुत नीचे है| गाँव में से एक नहर भी गुज़रती है जो लगभग पन्द्रह सालों से सूखी पड़ी है| अतः यहाँ के लोग भूमिगत पानी की मोटर लगाते हैं जो गहरे-गहरे कूओं में उतारी जाती हैं| इन कूओं की गहराई लगभग दो सौ फीट तक जाति है| यहाँ की मुख्य फ़सल हैं बाजरा, गेहूं, ज्वार और चना|
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